इतिहास के पन्नों से

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नेहरूजी,कक्काजी,
भिलाई इस्पात सयंत्र
की स्थापना और देश का
गौरव*….
*इतिहास के पन्नों से*

अनिल साखरे “पत्रकार

सीपी एण्ड बरार के मुख्यमंत्री पं. रविशंकर शुक्ल चाहते थे कि इस्पात संयंत्र की स्थापना भिलाई में हो पर ब्रिटेन के सहयोग से लगने वाला इस्पात संयंत्र,पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री विद्यानंद राय दुर्गापुर में ही स्थापित करने में सफल हो गयेतब पं. रविशंकर शुक्ल ने पीएम पं. जवाहरलाल नेहरू पर दबाव बनाया था,नेहरूजी ने आश्वासन दिया था कि सोवियत रूस के सहयोग से स्थापित इस्पात संयंत्र भिलाई (छत्तीसगढ़) मे ही स्थापित होगा। बाद में शुक्ल के प्रयास और जवाहरलाल नेहरू की दूरदृष्टि का ही प्रतिफल “भिलाई इस्पात संयंत्र” की स्थापना के रूप में हुई ,2 फरवरी 1955 को भारत-पूर्व सोवियत संघ के बीच अनुबंध के बाद 14 मार्च 1955 को दुर्ग जिले के भिलाई को संयंत्र की स्थापना के लिए चयनकिया गयासंयंत्र की स्थापना में पहली खुदाई 6 मार्च 1956 को की गई तो पहला कांक्री टिंग जून 1957 को हुई। प्रथम धमनभट्टी 4 फरवरी 1959 को शुरु हुई थी और एक मिलियन टन क्षमता के अंतर्गत समस्त इकाइयां 1961 तक शुरु हो गई थीराष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद ने भिलाई इस्पात संयंत्र के प्रथम ब्लास्ट फर्नेस का लोकार्पण 4 फरवरी 1959 को किया था वहीं देश के पहले पीएम नेहरू तीसरी तथा अंतिम बार 15 मार्च 1963 को आए थेउस समय नेहरूजी के साथ बालक राजीव गांधी भी आए थे। जो बाद में देश के प्रधानमंत्री भी बने

7 बार विश्व को लपेटने लायक
रेलपथ बनाने का रिकार्ड….

भिलाई का स्टील प्लांट पूरे भारत में “रेलवे ट्रैक” का एकमात्र निर्माता है यानी भारत की जीवन रेखा कह लाने वाली रेलवे लाइन सब भिलाई की ही देन हैं। यही नहीं राजधानी दिल्ली को रफ़्तार देने वाली मेट्रो के ट्रैक्स भी भिलाई में ही बने हैं, साथ ही यह देश के सब से लम्बे रेलवे ट्रैक (260 मी टर) का भी इकलौता सप्लायर हैभिलाई इस्पात संयंत्र नेअब तक जितने ट्रैक्स का निर्मा ण किया है,उनसे पृथ्वी को कई बार लपेटा जा सकता है। जब भिलाई ने दुनिया को 7 बार तक लपेट सकने के लायक रेल पथ बनाने का कीर्तिमान रचा। सेक्टर 10 स्थित चौ राहे पर रेल चौक का निर्मा ण किया गयाइस चौक पर स्थापित प्रतिमा में ग्लोब को 7 बार रेल पथ सेलिपटा हुआ दर्शाया गया है, बाद में जब संयंत्र द्वारा बनाये गए रेलपथ की लम्बाई और बढ़ गई तो ग्लोब पर लगे ट्रैक्स को हटा दिया गया, अब शहर के लोग इस चौक को ग्लोब चौक के नाम से जानते हैं

आईएनएस विक्रांत की
नीव भिलाई में पड़ी….

भिलाई स्टील प्लांट क्षेत्र फल के हिसाब से एशिया और उत्पादन के हिसाब से सेल का सबसे बड़ा स्टील प्लांट है। भिलाई स्टील के प्लांट को यूएसएसआर के सहयोग से 1955 में स्था पित किया गया था। स्टील प्लांट के लिए भिलाई को चुनने का मुख्य कारण था स्टील निर्माण के लिए लगने वाले रॉ मटेरियल्स का आस -पास के क्षेत्रों में आसानी से मिलनाभिलाई स्टील प्लांट में राजहरा माइंस से लौह अयस्क मंगाया जाता है। अब वहाँ लौह अयस्क समाप्ति की तरफ है इसी लिये बस्तर के रावघाट से लौह अयस्क लाने की तैयारी लगभग अंतिम चरण में है। लाइम स्टोन नंदिनी माइंस से मंगाया जाता है, जो यहां से 25 किलोमीटर दूर है और डोलोमाइट हिर्री से, जो यहां से 140 किलो मीटर की दूरी पर स्थित है। देश के पहले स्वदेशी विमान वाहक पोत “आईएनएस विक्रांत “की नींव भिलाई में बनी हैभारत ने हाल ही में अपना पहला स्वदेशी विमान वाहक पोत लांच किया था, आईएनएस विक्रांत सिर्फ युद्ध पोत ही नहीं है, समुद्र पर तैरता एक शहर है। ऐसा शहर जो दुनिया की हर तकनीक से लैस है, जिसके सामने पकिस्तान तो क्या रूस,अमेरिका भी नहीं टिक सकते…! स्वदेशी तकनीक से निर्मित इस विमान वाहक पोत के निर्माण के लिए विशेष प्रकार के स्टील की ज़रुरत होती है जो दुनिया के कुछ ही देशों में बनती है। 14/ 15 साल पहले जब इस पोत की परिकल्पना की गई थी तब भारत को उम्मीद थी*, यह स्टील रूस से मिल जाएगा पर रूस से *अनुकूल जवाब नहीं आया। तब भारत के पास दो ही रास्ते थे, या तो इस प्रोजेक्ट तो टाल दिया जाए या देश में उस खास खूबियों वाले स्टील का** निर्माण किया जाए। तब विशेष स्टील के निर्माण का बीड़ा स्टील अथॉरिटी ऑफ़ इंडिया लिमिटेड यानि सेल ने उठा या और वो विशेष प्लेटें दुर्गापुर,राऊरकेला और भिलाई स्टील प्लांट में तैयार की गईंपोत विमानों की लैंडिंग का झटका झेल सकने के लिए पोत में जो सबसे पतली, मजबूत प्लेटें लगी हैं उनका निर्माण भी भिलाई में किया गया है। 20 में से 11 पीएम ट्राफियों पर बीएसपी को अब तक 11 बार देश के सर्वश्रेष्ठ इंटी ग्रेटेड स्टील प्लांट होने का दर्जा प्राप्त हुआ है, इसके लिए इसे 11पीएम ट्रॉफी दी गईं है। पीएम ट्रॉफी की स्थापना के समय से अब तक प्रदान किये गए कुल 20 में 11 ट्राफी भिलाई के कब्ज़े में है, यह अपने आप में एक कीर्तिमान है
अनिल साखरे पत्रकार

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