“छ्ग का शिमला”,जहाँ बसाया गया था1962
में तिब्बतियों को*..
इतिहास के पन्नों से
शंकर पांडे पत्रकार
विन्ध पर्वतमाला पर स्थित मैनपाट की समुद्र तल से ऊंचाई करीब 3781 फीट है,सरगुजा छत्तीसगढ़ में है।सुंदर पहाड़ी की चोटी पर स्थित मैनपाटअधिकऊंचाई पर है,जिसके कारण यहां कोई रेल्वे स्टेशन नहीं है। निकटतम रेलवे स्टेशन अंबिकापुर है,जहां सेइसकी दूरीलगभग 55.7 किमी है।सड़क के रास्ते आसानी से मैनपाट पहुंचा जा सकता है।मैनपाट फेंडेलिंगतिब्बती बस्ती भारत सरकार द्वारा 1962 में स्थापित की गई थी,जिसका उद्देश्य 1400 तिब्बती शरणार्थियों कापुन र्वास करना था,जो 1959 में तिब्बत पर चीन के कब्जे के बाद भारत आये।भूमि, मध्यप्रदेश सरकार द्वारा उपलब्ध कराई गई थी और केंद्र सरकार ने इस योजना को वित्त पोषित किया था।छग के उत्तर हिस्से में स्थित मैनपाट की वादियों में ठंड ही नहीं हर मौसम में पर्य टकों की भीड़ उमड़ने लगी है।कश्मीर, शिमला, मनाली की तरह ही भारत की खूब सूरत जगहों में से एक उत्तर छत्तीसगढ़ का मैनपाट है।मैनपाट वर्षाकाल में जितना सुंदर नजर आता है उससे भी ज्यादा आकर्षक ठंड में हो जाता है।वर्षाकाल में रुई के फाहों की तरह अपने ही इर्द-गिर्द बादलों को देखना हो या फिर मानसूनी बादल, आप पर लिपटकर आपको भिगो जाये तो आश्चर्य नही होगा। यह मैनपाट ही है।यहाँ यह बताना जरुरी है कि जब तिब्बत में विद्रोह के बाद 1962 में तिब्बती शरणार्थियों को बसाने की बारी आई तो मैनपाट की आबोहवा के कारण चुना गया। मैनपाट में तिब्बती शरणार्थियों की अब बड़ी आबादी न सिर्फ गुजर- बसर करती है। बल्किअपनी पूरी प्राकृतिक क्षमताओं के साथ मैनपाट को उसी तरह अपनाये हुए हैं जिस तरह मैनपाट ने तिब्बत की तरह स्वीकारा है। प्राकृतिक रूप से पूरा मैनपाट का पठार सिक्किम की खूबसूरत वादियों की तरह है। यहां पहुंचते ही हर सैलानी रोमां चित हो उठता है। यहां पहुं चते ही लगे बोर्ड “मुस्कुरा इये आप मैनपाट में हैं” इस शब्द को चरितार्थ भी करते हैं। निश्चित ही यहां आकर आपको मुस्कुराना ही होगा । मैनपाट में वर्ष भर जहां लोगों को ठंड की अनुभूति होती है। शीतल हवा लोगों को सुकून देती है, मानसून शुरू होते बादलों की अट खेलियां हर किसी को भाने लगती हैं। बड़ी संख्या में पर्य टक यहां पहुंचते हैं। मैनपाट के पठार और कई दर्शनीय स्थलों में पहुंचकर रोमांचित होते हैं, बड़ी संख्या में यहां पर्यटकों के पहुंचने के कार ण रोजगार के भी अवसर सृजित हो रहे हैं।बेरोजगार युवाओं ने तंबू लगा रखा है जहां लोग रात बिताते हैं। शासकीय मोटल के साथ कई निजी होटल खुले हैं।यहां के पठार में तिब्बती फसल ‘टाऊ की खेती’ हजा रों हेक्टेयर में की जाती है, यह भी पर्यटकों के लिये आकर्षण का केंद्र रहता है*। *फूलों की मादकता पर्यटकों को बरबस आकर्षित करती है।यहां पहुंचने वाले टाऊ फसल में फोटो खिंचाने लंबे समय तक फसल के बीच नजर आते हैं। आदिवासी- तिब्बती जीवन शैली का अध्ययन भी लोग करते हैं। तिब्बतियों के अलग-अलग कैंप ही अपने आप में पर्य टन के केंद्र हैं।
आदिवासी और तिब्बत
जीवन शैली का मिश्रण..
मैनपाट की यात्रा के दौरान अगर ग्रामीण-आदिवासी जीवन शैली को नजदीक से कोई देखना चाहता है तो यह हमेशा तैयार रहता है। विशेष पिछड़ी जनजाति माझी- मझवार अध्ययन के विषय हैं,वही खूबसूरत पर छोटी- छोटी आंखों वाले तिब्बती समुदाय के लोग पर्यटकों को रोमांचित भी करते हैं। सात अलग-अलग तिब्बती कैंप भी भ्रमण के लायक हैं। यही नहीं यहां तिब्बती व्यंजनों का स्वाद भी लिया जा सकता है।शांति के ध्वज यहां हवा में लहराते अलग से सुकून पैदा करते हैं। बौद्ध मठ, मंदिर भी यहां दर्शन के लिए हमेशा खुले रहते हैं। यहां चावल,दाल, सब्जी चटनी के साथ पारंपरिक व्यंजनों का स्वाद मिलता है। यहां के सभी होटलों में शाकाहार,मांसाहार की उप लब्धता से पर्यटक और भी आकर्षित होते हैं। तिब्बती कैंटीन में तिब्बती व्यंजनों का आनंद लिया जा सकता है।