बिलासपुर का 134 साल पुराना रेल्वे स्टेशन भवन, 86 में हुआ था तोड़ने का प्रयास असफल।
इतिहास के पन्नों से
शंकर पांडे वरिष्ठ पत्रकार“
दक्षिण पूर्व मध्य रेलवे बिलासपुर जोन वर्ष 1890 में बना था। ब्रिटिश सरकार ने व्यापार की दृष्टि से इसे आकार दिया था। पहले मालगाड़ी का ही परिचालन प्रारंभ हुआ। तब किसी ने सपने में भी नहीं सोचा था, यह स्टेशन एक दिन भारत का कमाऊ पूत बनेगा।अंग्रेजों की दूरदर्शिता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि आज यह जोन देश को सबसे ज्यादा आय प्रदान कर रहा है। इतिहास के पन्नों में बिलासपुर रेलवे स्टेशन से जुड़ी कई ऐसी यादें है जिन्हें भुलाया नहीं जा सकता। मालगाड़ी से लेकर यात्री ट्रेनों का सफर आज भी जारी है। रेलवे स्टेशन का भवन सन1890 में अंग्रेजी हुकूमत की देखरेख में बनवाया गया था। भवन में भी दो फ्लोर हैं। सन 1867 में मध्यप्रांत के कमिश्नर रिचर्ड टेंपल ने इस भवन को रेलवे स्टेशन बनाने की सलाह दी,। नागपुर-बंगाल रूट में बिलासपुर को सन 1890 में रेलवे जंक्शन बनाया गया। वहीं रेलवे साउथ बेस्ट इंस्टीट्यूट का निर्माण सन1885 में तब की ब्रिटिश सरकार ने करवाया था। उस समय भवन का नाम यूरोपियन क्लब था। अंग्रेज अफसरों ने इस भवन को अपने रेस्ट हाउस के लिए बनाया था। डाक्टर परिवेश मिश्रा ने बताया कि सन 1986 में ही साऊथ ईस्टर्न रेल्वे ने बिलासपुर स्टेशन को तोड़कर उसके स्थान पर नया भवन खड़ा करने का निर्णय लिया गया था, संयोग से नवनिर्माण का ठेका कच्छी गुर्जर क्षत्रिय समाज के ठेकेदार हीरजी चावड़ा को मिला इसी समाज के ठेकेदारों ने सन 1890 में इसे बनाया था। मजदूरों ने दम लगा लिया, लेकिन हाथ से कटाई किये, चूने, अन्य चीजों के मिश्रण से विशेष रूप से बनाये गये घोल से जोड़े गये पत्थरों को तोड़ने में उनके पसीने छूट गये। अंत में कुछ रेल्वे अधिकारियों ने सामूहिक सद्बुद्धि का उपयोग कर मुख्य हिस्से को “हेरिटेज” का तमगा पहनाया और जस का तस छोड़ने का फ़ैसला किया। नया हिस्सा बगल में बनाया गया। सबसे खास बात यह कि स्टेशन का मकसद सिर्फ व्यापार था,जो आज भी रेलवे की प्राथमिकता में है। माल ढुलाई में देश में नंबर वन है।
टैगोर ने लिखी थी ‘फांकी’….
राष्ट्रगान रचयिता,महान साहित्यकार रविन्द्रनाथ टैगोर का बिलासपुर से गहरा नाता रहा है। उन्होंने पत्नी के साथ उनकी बीमारी की चिंता में पेंड्रा रोड सेनेटोरियम जाते समय बिलासपुर रेलवे स्टेशन में बिताये 6 घंटों के अंतराल में “फांकी” कविता लिखी, उस दौरान अपने अनुभवों को भी लिखा। गुरुदेव द्वारा लिखी गई फांकी को आज भी बिलासपुर रेलवे स्टेशन के गेट नंबर -2 में शिलालेख में तीन भाषा हिंदी, अंग्रेजी और बांग्ला में संजोकर रखा गया है। इन शिलालेखों को अमूल्य धरोहर माना जाता है।